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समझो नहीं, डूबो || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

2019-11-23 2 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />२१ अप्रैल, २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से,<br />असमाधेरविक्षेपान् न मुमुक्षुर्न चेतरः ।<br />निश्चित्य कल्पितं पश्यन् ब्रह्मैवास्ते महाशयः ॥२८॥<br /><br />ज्ञानी महापुरुष समाहित चित्त में आग्रह न होने के कारण मुमुक्षु नहीं, और विक्षेप न होने के कारण विषयी नहीं, मेरे सिवाय जो कुछ दिख रहा है, सब कल्पित ही है, ऐसा निश्चय कर के सबको देखता हुआ, वह वास्तव में ब्रह्म ही है।<br /><br />प्रसंग:<br />ब्रह्म क्या है?<br />ज्ञानी कौन है?<br />सत्य क्या है?<br />ज्ञानी महापुरुष चित्त में मुमुक्षु क्यों नहीं होता है?<br />मुक्ति क्या है?<br />मुक्ति किसे चाहिए?<br />निर्वाण माने क्या?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

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